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खतड़ुआ पर्व: कुमाऊँ में ऋतु-परिवर्तन और लोकविश्वास

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📍 हाल्द्वानी • 17 सितंबर 2025 • रिपोर्टर: लोकसंस्कृति ब्यूरो

खतड़ुआ कुमाऊँ का पारंपरिक पर्व है जो आमतौर पर आश्विन संक्रांति पर मनाया जाता है। यह पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है। गाँवों में लोग घर-परिवार की सफाई करते हैं, पशुओं को विशेष आहार देते हैं और सामूहिक रीति-रिवाज निभाते हैं।

शाम को लकड़ी, कांस और घास-फूस से तैयार “बूड़ी” (पुतला) को सजाकर जलाया जाता है। पुतले की राख को माथे और पशुओं पर लगाया जाता है — ग्रामीण मान्यता है कि इससे रोग और बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं और आने वाला साल सुख-समृद्धि लाता है।

लोकगीत और नारा

उत्सव के दौरान पारंपरिक गीत और नारे गाए जाते हैं। सबसे प्रचलित नारा है —

👉 “भाग खतड़ुवा, धरे-धर, गाय की जीत खतड़ की हार।”

यह नारा खेती की समृद्धि और पशुओं की सुरक्षा का प्रतीक है। बच्चे लोकनृत्यों में भाग लेते हैं और विशेष पकवान बांटे जाते हैं।

सांस्कृतिक महत्व

  • नए कृषि चक्र की शुरुआत का प्रतीक।
  • पशुपालन और सामुदायिक स्वास्थ्य पर ध्यान।
  • पीढ़ियों तक रीति-रिवाज और लोकज्ञान का हस्तांतरण।

मिथक बनाम वास्तविकता

कुछ लोककथाएँ इसे पुराने संघर्षों से जोड़ती हैं, पर शोधकर्ता इसे मुख्यतः ऋतु-आधारित तथा कृषि/पशु-परंपराओं से जुड़ा पर्व मानते हैं।


© 2025 लोकसंस्कृति ब्यूरो

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