उत्तराखंड की बेटियों को न्याय की मांग – मशाल जुलूस से उठी गूंज
हल्द्वानी।
उत्तराखंड की बेटियों के लिए न्याय की पुकार अब और तेज हो चुकी है। समाज के विभिन्न वर्गों ने किरण नेगी, मासूम काशिश और अंकिता भंडारी की याद में मशाल जुलूस निकालने का आह्वान किया है। इसका उद्देश्य है – बेटियों की सुरक्षा और न्याय को लेकर समाज को जगाना और एक मजबूत संदेश देना।
समाज की भावनाएँ
- यह आंदोलन किसी सरकार या प्रशासन के खिलाफ नहीं है, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना है।
- हर नागरिक का कर्तव्य है कि बेटियों की सुरक्षा और न्याय के लिए आगे आए।
- मौन रहना अब अपराधियों के हौसले को बढ़ाना है।
भावनात्मक अपील
🕯️ मशाल जुलूस सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि आशा की वह लौ है जो अंधेरे को मिटाकर इंसाफ की राह दिखाती है।
🕯️ यह समाज का संदेश है – बेटियों की आवाज़ दबाई नहीं जा सकती।
🕯️ हर बेटी की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा।
प्रशासन और कानून व्यवस्था
आयोजकों ने साफ किया है कि यह पूरा कार्यक्रम शांतिपूर्ण होगा।
जुलूस का उद्देश्य प्रशासन को असुविधा पहुँचाना नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता और न्याय की अपील करना है।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट – फैसलों का अंतर
- हाई कोर्ट: सबूतों और तर्कों के आधार पर फैसले देता है, लेकिन अपील की प्रक्रिया लंबी हो सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट: देश की सबसे बड़ी अदालत है, जहाँ दिए गए फैसले अंतिम और पूरे भारत में लागू होते हैं।
इसीलिए समाज चाहता है कि बेटियों से जुड़े मामलों में सुनवाई तेज़ हो और सुप्रीम कोर्ट तक न्याय जल्द पहुँचे।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में उठी यह आवाज़ सिर्फ तीन बेटियों की नहीं, बल्कि हर बेटी की सुरक्षा का प्रतीक है।
मशाल जुलूस से उठी यह गूंज बताती है कि समाज अब खामोश नहीं रहेगा और न्याय की लड़ाई अब रुकने वाली नहीं।