Rudrapur: 11वीं की छात्रा ने फंदा लगाकर दी जान, कमरे से मिला सुसाइड नोट… कई सवाल अब भी अनसुलझे
रुद्रपुर।
📰 रुद्रपुर : उधमसिंह नगर जिले के ट्रांजिट कैंप थाना क्षेत्र की रॉक जिम वाली गली रविवार की शाम दहशत में बदल गई। 17 वर्षीय छात्रा प्रियांशी, जो 11वीं कक्षा की होनहार छात्रा थी, अपने ही कमरे में फंदे से लटकी मिली।
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📌 कैसे हुआ घटनाक्रम?
शनिवार शाम लगभग साढ़े छह बजे प्रियांशी की मां गीता देवी घर पर ही अपने पार्लर में काम कर रही थीं। छोटी बहन आंगन में साइकिल के टायर में हवा भर रही थी। इसी दौरान प्रियांशी अचानक कमरे में चली गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
कुछ देर बाद जब मां ने आवाज़ दी और कोई जवाब नहीं मिला, तो पड़ोसियों को बुलाया गया। दरवाजा अंदर से बंद था और चीख-पुकार के बीच पड़ोसियों ने दरवाजा तोड़ा। दरवाजा खुलते ही सबके पैरों तले ज़मीन खिसक गई—प्रियांशी पंखे से लटकी थी।
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🏥 अस्पताल ले जाया गया, पर बचाया न जा सका
परिवार ने तुरंत उसे नीचे उतारा और अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने जांच के बाद उसे मृत घोषित कर दिया। इस घटना के बाद पूरे इलाके में मातम पसर गया।
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✒️ मिला सुसाइड नोट
कमरे से बरामद सुसाइड नोट में लिखा था:
> “सॉरी मम्मी… मैं यह कदम अपनी मर्जी से उठा रही हूं। इसमें किसी का हाथ नहीं है। लव यू मम्मी।”
ये कुछ शब्द भले ही छोटे हैं, लेकिन इनके पीछे छिपा दर्द और रहस्य बहुत बड़ा है।
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👩👧 परिवार की स्थिति
मां गीता देवी वर्षों से दोनों बेटियों की परवरिश अकेले कर रही हैं।
प्रियांशी बड़ी बेटी थी और 11वीं में पढ़ाई कर रही थी।
छोटी बेटी मात्र 11 साल की है।
आर्थिक स्थिति सामान्य मानी जा रही है, मां का एक छोटा सा पार्लर है।
पड़ोसियों के अनुसार प्रियांशी पढ़ाई में अच्छी थी और व्यवहार से भी गंभीर और समझदार लड़की थी।
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🕵️ पुलिस की कार्रवाई
ट्रांजिट कैंप पुलिस ने मौके का निरीक्षण कर सुसाइड नोट कब्जे में लिया।
पुलिस का कहना है कि प्रथम दृष्टया यह मामला आत्महत्या का है, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और आगे की जांच से ही सच्चाई साफ होगी।
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❓ अनसुलझे सवाल
क्या सचमुच यह फैसला उसने अपनी मर्जी से लिया?
क्या उस पर कोई ऐसा मानसिक दबाव था जिसे वह किसी से बांट नहीं पाई?
क्या स्कूल, समाज या पारिवारिक परिस्थितियों ने उसे अंदर से तोड़ा?
सुसाइड नोट में “किसी का हाथ नहीं” लिखने का मतलब क्या है—क्या वह अपने परिवार को शक से बचाना चाहती थी?
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🕯️ समाज के लिए सबक
इस घटना ने पूरे इलाके को झकझोर दिया है।
यह सिर्फ एक बच्ची की मौत नहीं, बल्कि उन सवालों की गूंज है जो हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं—
क्या हम अपने बच्चों की मौन पीड़ा को सुन पाते हैं?
क्या हम उनकी मनोवैज्ञानिक परेशानियों को समझ पाते हैं?
क्या परिवार और समाज मिलकर उन्हें इतना सहारा देते हैं कि वे इस तरह का कदम न उठाएं?
📌 निष्कर्ष
प्रियांशी का जाना एक दर्दनाक हादसा है, जिसने उस गली के हर दरवाजे पर सन्नाटा बिखेर दिया है। पुलिस की जांच आगे क्या राज़ खोलेगी, यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि यह घटना हर अभिभावक को चेतावनी देती है—
बच्चों की खामोशी को हल्के में न लें, क्योंकि कई बार वही खामोशी सबसे ऊँची चीख होती है।