“गढ़वाल की गाथा लौट रही है: नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 की तैयारी जोरों पर”
Location chamoli
देहरादून, 11 अगस्त 2025 — गढ़वाल और कुमाऊँ की पवित्र वादियों में हर 12 वर्ष पर होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा दुबारा सजीव होने जा रही है और राज्य सरकार इसकी तैयारियों को अंतिम रूप देने में व्यस्त है।
सरकारी तैयारियाँ तेज़ गति से
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में हाई-लेवल समीक्षा बैठक कर अधिकारियों को मार्ग मरम्मत, सुरक्षा रेलिंग, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, एम्बुलेंस और टेली-मेडिसिन जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं की सुनिश्चितता का निर्देश दिया है।
उन्होंने अधिकारियों को यह भी निर्देशित किया कि पर्यावरण-पर्यवेक्षण, आपदा प्रबंधन, भीड़ नियंत्रण और सिंगल-यूज़ प्लास्टिक प्रतिबंध जैसे पहलुओं को शामिल करते हुए व्यापक एसओपी तैयार किया जाए।

संस्कृति को मिलेगा मंच — देश और विदेश तक
यात्रा को लोक-उत्सव (folk festival) के रूप में आयोजित करने की योजना है, जिसमें स्थानीय कलाकारों को सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिए शामिल किया जाएगा। उनके लिए नियमित भुगतान बंदोबस्त का निर्देश सरकार ने दिया है।
मुख्यमंत्री ने इस धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम को देश-विदेश दोनों जगह फैलाने का अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं, जिसमें भारतीय दूतावासों की भागीदारी शामिल है।
यात्रा के ऐतिहासिक तत्व और अवधि
यह 280 किमी लंबी यात्रा आमतौर पर भाद्रपक्ष की नंदाष्टमी से लगभग 20 दिनों तक चलती है, जिसमें मां नंदा देवी की पवित्र यात्रा को उनके मायके (गढ़वाल) से ससुराल (होमकुंड/कैलाश) तक का भावपूर्ण रूप मिलता है।
यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक समृद्धता और प्राकृतिक सौंदर्य का भी अमूल्य उत्सव साबित होगी।

📜 इतिहास
यह यात्रा देवी नंदा देवी को समर्पित है, जिन्हें गढ़वाल की राजकुमारी और कुल देवी माना जाता है।
लोककथाओं के अनुसार नंदा देवी कुमाऊं के राजघराने से थीं और विवाह के बाद गढ़वाल आईं। विवाह के बाद उन्होंने मायके लौटने के बजाय पति के घर से ही देवी के रूप में हिमालय की ओर प्रस्थान किया।
इस यात्रा को देवी के ससुराल से मायके विदा होने का प्रतीक माना जाता है — इसलिए इसे “राजजात” यानी राजकीय विदाई यात्रा कहा जाता है।
परंपरा है कि यह यात्रा हर 12 साल में एक बार बड़े पैमाने पर निकाली जाती है, और बीच में छोटी यात्राएँ भी होती हैं।
यात्रा का रूट बेहद पुराना है — Nauti (चमोली) से शुरू होकर विभिन्न गाँवों, ऊँचे दर्रों और रूपकुंड होते हुए Homkund तक जाता है।
साथ चलने वाला चार-सिंग वाला भेड़ (Chausingya) देवी का विशेष दूत माना जाता है और यात्रा के अंत में उसे पर्वतों में छोड़ दिया जाता है।
यह परंपरा राजवंशों, ग्राम देवी-देवताओं, और हिमालयी लोकसंस्कृति के मेल का अनूठा उदाहरण है, जो सदियों से लगभग एक जैसी चली आ रही है।